हरिद्वार
सभी पापों को हरने वाली मोक्षदायिनी गंगा नदी के तट पर बसा हरिद्वार (Haridwar) हिंदुओं के प्रमुख तीर्थों में से एक है। हरिद्वार वह स्थान है जहां मोक्षदायिनी पवित्र गंगा गोमुख हिमालय से होती हुई मैदानी क्षेत्र में प्रवेश करती है। प्रत्येक दिन हजारों तीर्थयात्री यहां गंगा स्नान कर पापों से मुक्ति पाते हैं। यहां पर लोग हिंदू रीति रिवाजों के अनुसार धार्मिक कर्मकांड, पितृ विसर्जन, मुंडन, जनेऊ आदि धार्मिक अनुष्ठानों को संपन्न करते हैं।
चारधाम का प्रवेश द्वार
प्राचीन समय में हरिद्वार को मायापुरी के नाम से भी जाना जाता था। हरिद्वार को चार धाम यात्रा का प्रवेश द्वार कहा जाता है। मान्यता है कि जो श्रद्धालु चार धाम की यात्रा पर जाना चाहते हैं, उन्हें अपनी यात्रा हरिद्वार से ही शुरू करनी चाहिये।
इन सब के अलावा हरिद्वार में आयोजित होने वाले महाकुंभ के विश्व प्रसिद्ध है। महाकुंभ मेले का आयोजन प्रत्येक 12 वर्ष में आयोजित होता है। विश्वविख्यात आयोजन का अंदाजा इसी बात से लगाया जाता है कि देश ही नहीं बल्कि पूरे विश्व से करोड़ों लोग इस महाकुंभ को देखने आते हैं।
पौराणिक कथा
हरिद्वार के संबंध में अनेकों पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। इनमें से एक पौराणिक मान्यता के अनुसार, ‘ऋषि कश्यप’ पुत्र ‘गरुड़’ अपनी मां ‘विनता’ जो कि अपनी सौतन ‘कद्रू’ की दासी थी, उनको मुक्त कराने के लिए अमृत कलश को लेकर जा रहे थे। तभी उस अमृत कलश से कुछ बूंदें धरती पर गिर गई थी। जहां-जहां पर अमृत की बूंदे गिरी वहां पर तीर्थ-स्थलों की स्थापना हुई। ये तीर्थ-स्थल उज्जैन, हरिद्वार, नासिक, और प्रयाग में स्थापित हुये।
एक अन्य मान्यता है कि भगीरथ जब गंगा को धरती पर ला रहे थे तो इसी स्थान पर आकर गंगा मैया ने भगीरथ के पूर्वजों को पापों से मुक्त किया था। माना जाता है कि तभी से ही हरिद्वार में अस्थियों के विसर्जन की परंपरा भी शुरू हुई।मान्यता के अनुसार यहां पर अस्थियों को विसर्जित करने से मृत व्यक्ति को सभी पापों से मुक्ति मिलती है। इसके अलावा जो भी व्यक्ति हरिद्वार में स्नान करता है उसके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। उसे सभी पापों से मुक्ति मिलती है।
प्रमुख आकर्षण
गंगा नदी की अविरल धारा और प्रतिदिन मां गंगा को समर्पित गंगा आरती हरिद्वार का मुख्य आकर्षण है। हर की पौड़ी, चंडी देवी मंदिर, कनखल, शांतिकुंज, माया देवी मंदिर, मनसा देवी मंदिर, सप्तऋषि आश्रम, पारद शिवलिंग आदि हरिद्वार और इसके आसपास के प्रमुख आकर्षणों में से हैं।
हर की पौड़ी
हरिद्वार की सबसे मुख्य घाट हर की पौड़ी है। यह पर पर धार्मिक धार्मिक अनुष्ठान और मंगल कार्य सम्पन्न किए जाते हैं। यहाँ पर स्नान करना हरिद्वार आए श्रद्धालु की सबसे प्रबल इच्छा होती है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि यहाँ पर स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार हर की पौड़ी पर ही अमृत की बूँदे गिरी थीं। हर की पौड़ी को ब्रह्म कुंड के नाम से भी जाना जाता है। घाट पर प्रत्येक दिन संध्या काल में गंगा मां की आरती होती है। माँ गंगा की आरती देखने का अनुभव मन को अत्यधिक शांति प्रदान करने वाला होता है।
चंडी देवी मंदिर
माता चंडी देवी मन्दिर हरिद्वार से लगभग 2 किलोमीटर की दूरी पर नील पर्वत पर स्थित है। हरिद्वार के प्रसिद्ध मंदिरों, चंडी देवी और मनसा देवी के मंदिरों तक जाने के लिए ‘उड़न खटोला’ (Rope way) का इस्तेमाल किया जाता है। यह यात्रा बेहद आनंदमयी और रोमांचित करने वाली होती है। माँ चंडी देवी मन्दिर परिसर में अन्नपूर्णा देवी मन्दिर, माँ भद्र काली मन्दिर , काल भैरव मन्दिर, संकट मोचन हनुमान मन्दिर एवं अन्य छोटे-छोटे स्थापित हैं। दूर दूर से भक्त यह पर माँ चंडी देवी के दर्शनों के लिए आते हैं।
मनसा देवी मंदिर
मनसा देवी मंदिर हरिद्वार के प्रमुख आकर्षणों में से एक है। मंदिर में मनसा देवी की 2 प्रतिमाएं हैं पहली प्रतिमा 3 तीन मुख तथा 5 भुजा वाली है। मान्यता है कि माँ मनसा देवी भक्तों की सभी मनोकामनाएँ पूर्ण करती हैं। मनसा यानी भक्तों की मन की इच्छा पूर्ण करने वाली, इसलिए देवी मनसा देवी के नाम से जानी जाती हैं ।
यहाँ मंदिर में आने वाले भक्त मंदिर के पास एक पेड़ धागा बांधते हैं। मान्यता है कि यहाँ धागा बांधने से सच्चे मन से माँगी गई भक्तों मन्नतें पूर्ण होती हैं। मंदिर पहाड़ी पर स्थित होने के कारण यहाँ जाने के लिए पैदल अथवा रोपवे की मदद से जाया जा सकता है।
माया देवी मंदिर
माया देवी मन्दिर हरिद्वार रेलवे स्टेशन से लगभग 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह मंदिर हरिद्वार का बहुत प्राचीन मन्दिर और शक्तिपीठ है। माँ सती के इस मन्दिर में भक्तो की सारी मनोकामनाए पूर्ण होती है। इस मन्दिर परिसर में बहुत से शिवलिंग बने हुये है, और एक कान्हा जी का सुन्दर झूला भी बना हुआ है।
शांतिकुंज / गायत्री शक्तिपीठ
यह हरिद्वार से लगभग 6 किलोमीटर की दूरी पर हरिद्वार – ऋषिकेश मार्ग पर स्थित। इसकी स्थापना 1971 में हुई थी यह गायत्री परिवार मुख्य गढ़ है। यहाँ का वातावरण मन को शांति देने वाला होता है। शारीरिक और मानसिक शांति यह का वातावरण बेहद अनुकूल होता है।
सप्तऋषि आश्रम
सप्तऋषि आश्रम हर की पौड़ी से 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह हरिद्वार के सबसे प्रसिद्ध आश्रमों में से एक है।पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस आश्रम में सात ऋषियों ऋषि कश्यप, वशिष्ठ, अत्रि, विश्वामित्र, जामदगी, भारद्वाज और गौतम ने तप किया था। कहा जाता है कि माँ गंगा इस स्थान पर सात धाराओं में खुद को विभाजित करती है। यहाँ का वातावरण ध्यान और मानसिक शांति प्राप्त करने अत्यंत अनुकूल होता है।
गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय म्यूजियम
गुरुकुल कांगड़ी हरिद्वार रेलवे स्टेशन से लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर हरिद्वार दिल्ली रोड पर स्थित है। गुरुकुल कांगड़ी भी हरिद्वार के प्रमुख आकर्षणों में से एक है। इसकी स्थापना सन् 1902 में स्वामी श्रद्धानंद जी द्वारा की गई थी। विश्वविद्यालय का म्यूजियम अत्यन्त प्राचीन काल के कला अवशेषों, शस्त्रों व सिक्कों आदि से सुसज्जित है।
पतंजलि योगपीठ
जैसा कि हम जानते हैं पतंजलि योगपीठ योग और आयुर्वेद के प्रचार प्रसार के लिए विश्वप्रसिद्ध है। पतंजलि योगपीठ के मुखिया बाबा रामदेव का यह सबसे बड़ा केंद्र है। यहां पर योग और आयुर्वेद पर अनुसंधान किया जाता है। यह हरिद्वार-दिल्ली मार्ग पर हरिद्वार रेलवे स्टेशन से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है|
दक्ष महादेव मंदिर
हरिद्वार से लगभग 4 किलोमीटर की दूरी पर कनखल में दक्ष महादेव मंदिर स्थित है। यह प्राचीन मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। राजा दक्ष प्रजापति के नाम पर इस मंदिर का नाम रखा गया है। मंदिर में भगवान विष्णु के पाँव के निशान बने है साथ ही मंदिर में एक छोटा सा गड्ढा है। इस गड्डे के बारे में मान्यता है की यहाँ पर देवी सती ने अपने जीवन का बलिदान दिया था।
कैसे जाएं?
हरिद्वार दिल्ली से लगभग 225 किमी. की दूरी पर स्थित है। दिल्ली से यात्री उत्तराखंड परिवहन निगम की बसों द्वारा हरिद्वार जा सकते हैं। हवाई सेवाओं के लिए हरिद्वार से निकटतम हवाई अड्डा जॉली-ग्रांट हवाई अड्डा है। रेल सेवाओं के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन हरिद्वार में ही स्थित है।
हरिद्वार में पर्यटकों के रहने और ठहरने के लिए उत्तराखंड सरकार द्वारा पर्यटक आवास गृह बनाए गए हैं। साथ ही यहां पर अन्य छोटे और बड़े गेस्ट हाउस और होटल आसानी से उपलब्ध रहते हैं। ट्रस्टों द्वारा चलाए जा रहे आश्रमों में भी पर्यटकों के ठहरने की व्यवस्था होती है।