हेमकुंड साहिब
सिखों के दसवें धर्मगुरु ‘गुरु गोविंद सिंह’ की तपोस्थली के नाम से विश्व विख्यात ‘हेमकुंड (हेमकुंट) साहिब’ उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है। मान्यता है कि इस स्थान पर ‘गुरु गोविंद सिंह’ ने पूर्वजन्म में तपस्या की।
तपस्या करते हुए इसी स्थान पर भगवान ने उन्हें दर्शन दिये। गुरु गोविंद सिंह को पृथ्वी पर जन्म लेकर बुराइयों का नाश करने का आदेश दिया। गुरु गोविंद सिंह द्वारा रचित ‘दशम ग्रंथ’ में इस बात का वर्णन मिलता है।
मनोरम एवं रोमांच से परिपूर्ण :
दरअसल हेमकुंड संस्कृत के हेम और कुंड शब्द को मिलाकर बना हुआ है। जहां हिम का अर्थ है ‘बर्फ’ और कुंड का अर्थ ‘तालाब’ से है। हेमकुंड सुमेरु पर्वत का एक कोना है। इसके पास ही सप्तश्रृंग नामक पर्वत भी स्थित है। मान्यता है कि महाभारत काल में पांडवों के पिता महाराज पांडु ने यहीं पर अपनी तपस्या पूरी की।
गुरुद्वारा ‘हेमकुंड साहिब’ हेमकुंड झील के तट पर स्थित है। यह झील अत्यंत ही सुंदर है। चारों ओर से बर्फ़ से ढकी की ऊँची-ऊँची चोटियों का प्रतिबिम्ब विशालकाय झील में अत्यन्त मनोरम एवं रोमांच से परिपूर्ण लगता है।
झील में हाथी पर्वत और सप्त ऋषि पर्वत श्रृंखलाओं से पानी आता है। इस झील से एक छोटी जलधारा निकलती है जिसे हिमगंगा कहा जाता है। झील के किनारे स्थित लक्ष्मण मंदिर भी अत्यन्त दर्शनीय है।
हिमालय क्षेत्र होने के कारण ‘हेमकुंड साहिब’ झील का पानी काफी ठंडा रहता है। तीर्थस्थान के अंदर जाने से पहले तीर्थयात्री इस झील के पवित्र जल में डुबकी लगाते हैं। इसी के पश्चात तीर्थस्थान के दर्शन करते है। यहां पर पुरुषों और महिलाओं के लिए अलग-अलग कक्ष बने हैं।
सर्वाधिक ऊंचाई वाला तीर्थ :
हेमकुंड दुनिया के अत्यधिक ऊंचाई वाले तीर्थों में से एक है। इसकी ऊंचाई करीब 15000 फिट से भी अधिक है। बर्फ से ढकी हिमालय चोटियों के बीच में स्थित यह सथान अत्यंत ही शांतिदायक है। हर साल हजारों की संख्या में सिख तीर्थ यात्री ‘हेमकुंड साहिब’ के दर्शन करने आते हैं।
तीर्थ यात्रा का समय:
हिमालय पर्वत की श्रंखलाओं मे बसे होने के कारण यहां पर 7-8 महीने बर्फ जमा रहती है। यहां पर मौसम अत्यंत सर्द भरा रहता है। इसलिये मई और जून माह का समय यात्रा के लिए सर्वोत्तम माना जाता है।
इसी दौरान ज्यादातर श्रद्धालु हेमकुंड साहिब की यात्रा करते हैं। अक्टूबर के माह में हेमकुंड साहिब के कपाट कीर्तन और अरदास के बाद विधि-विधान के साथ शीतकाल के लिए बंद कर दिए जाते हैं।
प्रबंधन और देखरेख:
‘हेमकुंड साहिब’ की खोज और प्रचार-प्रसार का सबसे अधिक श्रेय ‘संत सोहन सिंह जी’ को दिया जाता है। संत सोहन सिंह जी एक सिख धर्मोपदेशक थे। ‘संत सोहन सिंह जी’ ने अपनी मृत्यु से पहले हेमकुंड साहिब के विकास, प्रचार-प्रसार की जिम्मेदारी ‘मोहन सिंह को’ सौपी।
1968 में अपनी मोहन सिंह ने सात सदस्यों की एक कमेटी बनाकर इस तीर्थयात्रा के संचालन की निगरानी कमेटी को दे दी। तब से हेमकुंड साहिब और यहां आने वाले सभी तीर्थ यात्रियों की यात्रा से संबंधित सुविधाओं का प्रबंधन इसी कमेटी द्वारा किया जाता है।
कैसे पहुंचे हेमकुंड साहिब ?
‘हेमकुंड साहिब’ तक जाने की शुरुआत गोविंदघाट से होती है। यह अलकनंदा नदी के किनारे पर समुद्र तल से करीब 1828 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। गोविंदघाट से करीब 13 किमी. पैदल घांघरिया बेस कैंप पहुंचते हैं।
घांघरिया बेस कैंप से पहाड़ की मुश्किल भरी चढ़ाई चढ़ने के बाद हेमकुंड तक पहुंचा जाता है। घांघरिया बेस कैंप से हेमकुंड साहिब की दूरी 6 किमी. है। गोविंदघाट से हेमकुंड साहिब तक की कुल दूरी 19 किलोमीटर है।
जॉली ग्रांट एयरपोर्ट,देहरादून नजदीकी एयरपोर्ट है। गोविंदघाट से जॉली ग्रांट की दूरी 292 किलोमीटर है। यहां से गोविंदघाट तक टैक्सी या बस के जरिए पहुंच सकते हैं।
हेमकुंड साहिब जाने के लिये नजदीकी रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है। यह गोविंदघाट से 273 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। ऋषिकेश से टैक्सी या बस के जरिए श्रीनगर, रुद्रप्रयाग, चमोली और जोशीमठ होते हुए गोविंदघाट पहुंच सकते हैं।