पाताल भुवनेश्वर
उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में स्थित पाताल भुवनेश्वर गुफा किसी आश्चर्य से कम नहीं है। प्रकृति की खूबसूरत वादियों के बीच स्थित यह विशालकाय गुफा पहाड़ी के करीब 90 फीट अंदर है।
आप इस रहस्यमयी विशालकाय गुफा में 33 करोड़ देवी देवताओं के अलावा केदारनाथ, बद्रीनाथ और अमरनाथ सहित अनेकों धामों और तीर्थों के दर्शन एक साथ में कर सकते हैं।
यह एक आश्चर्य ही है कि जमीन के इतने अंदर होने के बावजूद भी इस गुफा के अंदर किसी को भी घुटन महसूस नहीं होती है। बल्कि इस गुफा के दर्शन करने से अद्भुत मानसिक प्रसन्नता और शांति का एहसास होता है।
प्रवेश द्वार
देवदार के घने जंगलों के बीच में स्थित इस रहस्य और रोमांचकारी गुफा में प्रवेश करना भी बेहद रोमांचकारी होता है। दरअसल गुफा का प्रवेश द्वार काफी छोटा दिखाई देता है।यहां पर मौजूद पुजारी या गाइड गुफा में प्रवेश का तरीका बताते हैं।
इसके लिए सबसे पहले अपना दायां हाथ गुफा के अंदर प्रवेश कराना होता है। उसके बाद सिर का हिस्सा गुफा में प्रवेश करता है। फिर दाएं पैर को गुफा में प्रवेश कराने के साथ ही आसानी से पूरा शरीर गुफा के अंदर प्रवेश कर जाता है।
गुफा में प्रवेश
संकरे प्रवेश द्वार से प्रवेश के उपरांत पहाड़ी पर जमीन के करीब 90 फीट अंदर तक पत्थर को कुरेद कर बनाई हुई फिसलन भरी सीढ़ियों के सहारे विशालकाय गुफा तक पहुंचा जा सकता है। नीचे उतरने के लिए सीढ़ियों पर लगी जंजीरों के सहारा लिया जाता है। गुफा के अंदर पहुंचते ही एक दर्शन होते हैं विशालकाय गुफा के। यहां से गुफा में आगे की यात्रा शुरू होती है।
गुफा के दर्शन
पहले जब तक गुफा के देखरेख और प्रबंधन की कोई व्यवस्था नहीं थी तब गुफा के अंदर घुप्प अंधेरा होता था। लोग मसाल के सहारे ही गुफा के दर्शन किया करते थे। लेकिन वर्तमान में रोशनी की व्यवस्था है। गुफा में उतरने के लिए जंजीरों की भी व्यवस्था है। पाताल भुवनेश्वर की यह गुफा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा संरक्षित है।
शेषनाग और ऐरावत के दर्शन
गुफा में प्रवेश करते ही गुफा के प्रथम तल पर भगवान नरसिंह के दर्शन होते हैं। इसी के साथ ही गुफा के अंदर विशालकाय पत्थरों की एक हाथी नुमा आकृति नजर आती है। पुजारियों के अनुसार यह आकृति ऐरावत हाथी की है। ऐरावत को भगवान इन्द्र का हाथी माना जाता है। देव तथा दानवों के बीच हुए समुद्र-मंथन से जो 14 रत्न प्राप्त हुए उनमें से एक ऐरावत भी था।
यहीं पर गुफा की दूसरी तरफ शेषनाग के फनों की आकृति भी नजर आती है। मान्यता है कि संपूर्ण पृथ्वी इसी शेषनाग के धड़ के ऊपर टिकी हुई है।
गुफा में छिपा प्रलय का राज
कहा जाता है कि इस गुफा में प्रलय का राज छिपा है। दरअसल यहां चार प्रस्तर खंड हैं जो चार युगों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इनमें से तीन एक समान है जो कि सतयुग, त्रेता युग और द्वापर युग के प्रतीक हैं। चौथे पिंड को कलयुग का प्रतीक माना जाता है।
कहा जाता है कि हर 7 करोड़ वर्ष में इसके आकार में 1 इंच की वृद्धि होती है और जिस दिन यह पिंड इसके ऊपर स्थित पाषाण खंड को छू लेगा उसी दिन प्रलय आ जाएगा।
शेषनाग का धड़
गुफा में आगे बढ़ने पर उबड़ खाबड़ पथरीले रास्ते से गुजारना होता है। गाइडों के अनुसार यह पथरीला रास्ता शेषनाग का धड़ है।
आगे जाने पर छोटा सा हवन कुंड दिखाई देता है। कहा जाता है कि राजा परीक्षित को श्राप से मुक्ति दिलाने के लिए उनके पुत्र जन्मेजय द्वारा इसी कुंड में सभी नागों को जलाकर मार डाला गया था। हवन कुंड के ऊपर तक्षक नाग की आकृति नजर आती है
बिना सिर के गणेश की मूर्ति
जैसे जैसे हम आगे बढ़ने लगते हैं गुफा में अनेकों पाषाण संरचनाएं और अद्भुत कलाकृतियां नजर आने लगती हैं। गुफा में एक स्थान पर गणेश जी की बिना सिर वाली मूर्ति स्थापित है। भगवान गणेश की इस मूर्ति पर लगातार पहाड़ी के ऊपर बने के कमल के लगातार पानी रहता है।
मान्यता है कि जब भगवान शिव ने गणेश का सिर काट दिया था तो भगवान गणेश के धड़ को जिंदा रखने के लिए इसी कमल के फूल से पानी डालकर धड़ को जिंदा रखा गया था।
आज भी भगवान गणेश के धड़ पर कमल के फूल से पानी लगातार टपकता रहता है। इसके अलावा गुफा में भगवान शिव की विशाल जटाएं भी नजर आती है और साथ में भगवान शिव के कमंडल, खाल आदि के भी दर्शन होते हैं।
पत्थर से दूध का टपकना
गुफा के अंदर आगे बढ़ते हुए गुफा की छत पर गाय के थन की एक आकृति नजर आती है। माना जाता है कि यह कामधेनु गाय का थन है जिसमें से लगातार दूध की धार बहती रहती है। मान्यता है कि कलयुग में अब इसमें से दूध के बदले पानी बहता है। देखने पर प्रतीत भी होता है कि ऊपर से दूध बह रहा है जबकि नीचे आकर यह पानी होता है।
टेढ़ी गर्दन वाला हंस
गुफा में अनेकों कलाकृतियों में से एक है टेढ़ी गर्दन वाले हंस की आकृति जो कि एक जलकुंड के किनारे पर बैठा दिखाई देता है। इसके बारे में मान्यता है कि भगवान शिव ने इस हंस को इस कुंड की रक्षा की जिम्मेदारी सौंपी थी लेकिन हंस ने ही किसी कारणवश इस कुंड के पानी को जूठा कर दिया था जिससे भगवान ने क्रोधित होकर हंस की गर्दन को टेढ़ा कर दिया।
बद्रीनाथ-केदारनाथ-अमरनाथ के दर्शन
मंदिर में आगे बढ़ने पर हमें अनेकों देवी देवताओं के दर्शन होते हैं। यहां पर बद्रीनाथ केदारनाथ और अमरनाथ के भी दर्शन होते हैं। मान्यता यह भी है कि पाताल भुवनेश्वर के दर्शन मात्र से ही चारों धाम के दर्शन के बराबर पुण्य की प्राप्ति होती है। इसके अलावा गुफा में काल भैरव की जीभ की आकृति दिखाई देती है।
शंकराचार्य द्वारा स्थापित शिवलिंग
गुफा के अंदर एक तांबे से मढ़ा शिवलिंग भी स्थापित है। कहा जाता है कि 19वीं सदी में आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा इस शिवलिंग को स्थापित किया गया था। इसी तरह अनेकों मूर्तियों और आकृतियों के दर्शन करते हुए गुफा के अंतिम छोर में पांडवों की मूर्तियां नजर आती है।
स्थानीय पुजारी बताते हैं कि गुफा यहां से (अंतिम छोर) और भी आगे तक है। लेकिन इससे आगे अाज तक कोई भी नहीं जा सकता है।
सैलानियों के आकर्षण का केंद्र
पाताल भुवनेश्वर की यह विशालकाय गुफा उत्तराखंड में आने वाले सैलानियों के लिए आकर्षण का केंद्र है। देश-विदेश से सैलानी इस गुफा के दर्शन करने आते हैं। यह गुफा केवल धार्मिक और पर्यटन की दृष्टि से ही महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि यह गुफा पाषाण कलाकृति का भी एक बेजोड़ और अद्भुत नमूना है।
कैसे पहुचें पाताल भुवनेश्वर:
पाताल भुवनेश्वर उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में ‘गंगोलीहाट’ क्षेत्र में स्थित है। रेल मार्ग से पाताल भुनेश्वर पहुंचने के लिए सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन काठगोदाम या टनकपुर है। यहां से बस अथवा टैक्सी द्वारा पाताल भुवनेश्वर पहुंचा जा सकता है।
अल्मोड़ा से पाताल भुवनेश्वर की दूरी लगभग 160 किलोमीटर है। यहां से सेराघाट होते हुए गंगोलीहाट मोटरमार्ग से पाताल भुवनेश्वर पहुंच सकते हैं। टनकपुर से भी बस या टैक्सी के द्वारा पाताल भुनेश्वर पहुंचा जा सकता है।